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त्वं नो॑ अग्ने अङ्गिरः स्तु॒तः स्तवा॑न॒ आ भ॑र। होत॑र्विभ्वा॒सहं॑ र॒यिं स्तो॒तृभ्यः॒ स्तव॑से च न उ॒तैधि॑ पृ॒त्सु नो॑ वृ॒धे ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no agne aṅgiraḥ stutaḥ stavāna ā bhara | hotar vibhvāsahaṁ rayiṁ stotṛbhyaḥ stavase ca na utaidhi pṛtsu no vṛdhe ||

पद पाठ

त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒ङ्गि॒रः॒। स्तु॒तः। स्तवा॑नः। आ। भ॒र॒। होतः॑। वि॒भ्व॒ऽसह॑म्। र॒यिम्। स्तो॒तृभ्यः॑। स्तव॑से। च॒। नः॒। उ॒त। ए॒धि॒। पृ॒त्ऽसु। नः॒। वृ॒धे ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:10» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:7 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्यार्थिविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) दाता और (अङ्गिरः) प्राण के सदृश प्रिय (अग्ने) विद्वन् ! (स्तुतः) प्रशंसित (स्तवानः) प्रशंसा करते हुए (त्वम्) आप (नः) हम लोगों के लिये (विभ्वासहम्) व्यापकों के अच्छे प्रकार सहनेवाले (रयिम्) धन को (आ, भर) धारण कीजिये तथा (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों और (स्तवसे) स्तुति करनेवाले के लिये (च) भी (नः) हम लोगों को धारण कीजिये (उत) और (पृत्सु) संग्रामों में (वृधे) वृद्धि के लिये (एधि) प्राप्त हूजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थियों को चाहिये कि विद्वानों की इस प्रकार प्रार्थना करें कि हे भगवानो ! अर्थात् विद्यारूप ऐश्वर्य्ययुक्त महाशयो ! आप लोग हम लोगों को ब्रह्मचर्य्य करा और उत्तम शिक्षा तथा विद्या देके और संग्रामों को जीतकर हम लोगों की निरन्तर वृद्धि करिये ॥७॥ इस सूक्त में अग्निशब्दार्थ विद्वान् और विद्यार्थी के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह दशवाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्यार्थिविषयमाह ॥

अन्वय:

हे होतरङ्गिरोऽग्ने ! स्तुतः स्तवानः सँस्त्वं नो विभ्वासहं रयिमा भर स्तोतृभ्यः स्तवसे च नोऽस्मानाभरोत पृत्सु नो वृध एधि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्मान् (अग्ने) विद्वन् (अङ्गिरः) प्राण इव प्रियः (स्तुतः) प्रशंसितः (स्तवानः) प्रशंसन् (आ) (भर) (होतः) दातः (विभ्वासहम्) यो विभूनासहते तम् (रयिम्) (स्तोतृभ्यः) (स्तवसे) स्तावकाय (च) (नः) अस्मान् (उत) (एधि) (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (नः) (वृधे) वर्द्धनाय ॥७॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थिनो विदुष एवं प्रार्थयेर्युर्हे भगवन्तो यूयमस्मान् ब्रह्मचर्य्यं कारयित्वा सुशिक्षां विद्यां दत्त्वा सङ्ग्रामान् जित्वाऽस्माकं वृद्धिं सततं कुरुतेति ॥७॥ अत्राग्निविद्वद्विद्यार्थिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति दशमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्यार्थ्यांनी विद्वानांना याप्रमाणे प्रार्थना करावी की हे श्रेष्ठ पुरुषांनो! तुम्ही आम्हाला ब्रह्मचर्य पाळावयास लावून उत्तम शिक्षण व विद्या देऊन युद्धात जिंकावयास प्रवृत्त करून आमची निरंतर वृद्धी करा. ॥ ७ ॥